वीर जटायु ....
हर लिया था उसने तो साक्षात लक्ष्मी माता को।
विलाप करते-करते दुःख में पुकार रही थी जानकी।
पाप था उसको दुःख देना वो थी पात्र सम्मान की।
आर्य जटायु ने सुनी रोती वैदेही की पुकार।
क्रुद्ध जटायु को करना था तत्क्षण अविलम्ब प्रहार।
पक्षिश्रेष्ठ जटायु ने कही एक बात महान।
सीता है मेरी पुत्री और मैं हूँ उसके तात सामान।
एकाकी परस्त्री हरके लाने वाले को नहीं कहते वीर।
लौटाओ बेटी सीता को अथवा तैयार हैं श्रीराम के तीर।
मैं तो हूँ एक वृद्ध गिद्ध तुम हो त्रिलोकविजयी बल के साथ।
अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित दशानन, हैं तुम्हारे अनेक हाथ।
आर्य जटायु की बातों से हो गया रावण अति क्रुद्ध ।
तलवार उठाकर फिर उसने आरम्भ किया एक भीषण युद्ध।
वृद्ध देह था जटायु का पर उन्होंने हार न मानी।
अधर्म का कार्य करने वाले रावण की ही थी हानि।
पक्षिराज का रावण ने काट दिया फिर एक पर।
दुष्कर्म कर रहा था रावण पाकर ब्रह्मदेव का वर।
आदर्श आचरण करते हुए वीर जटायु बने महान।
रामभक्ति में पक्षिश्रेष्ठ ने त्याग दिए थे अपने प्राण।
कवयित्री - श्रावणी केलापुरे
कविता का सन्दर्भ - श्रीवाल्मिकी रामायण (संस्कृत)
Excellent poem Shravani. Keep giving wings to your imagination. God bless
ReplyDeleteExcellent poem beta, keep it up and keep penning down. All the best
ReplyDeleteVery well written beta... ��������
ReplyDeleteVery well written.... Our best wishes to Shravani
ReplyDeleteAmazing words
ReplyDeleteAwesome shravani. Keep exploring more of yourself through your poems. All the best
ReplyDeleteVery well written. imagination and usage of words is excellent
ReplyDeleteProfoundly expressed.
ReplyDeleteAwesome Shravani..keep it up
ReplyDeleteVery well written. keep it up Shravani !!!
ReplyDeleteThank you so much everyone....Your appreciative comments are very encouraging.
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ReplyDeleteWell written Sharvari.....good going dear
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